ऐसे करें आंखों की देखभाल !
हम सभी जानते हैं कि आंखें अनमोल हैं। हमारी आंखें ही हमें दुनिया दिखाती हैं। अगर आंखें ही न हों, तो जीव दुनिया के बारे में कुछ भी अच्छी तरह नहीं जान सकता। आंखों के बिना जीवन अंधकारमय होता है। यह नेत्रयुक्त जीवों की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
आंकड़ों की बात की जाए तो विश्व में सबसे अधिक दृष्टिहीन लोगों की संख्या भारत में है। सर्वे के अनुसार, विश्व में लगभग 4 करोड़ लोग अंधकारमय जीवन जी रहे हैं। इनमें से एक करोड़ से अधिक नेत्रहीनों की संख्या भारत में ही है। इस कुल संख्या में से सबसे अधिक मोतियाबिंद के 60%, रेक्टिव एरर के 19%, ग्लूकोमा के 6% और बाकी दूसरी बीमारियों से ग्रस्त होने के कारण नेत्रहीन हो चुके हैं। हजार की संख्या में से हर सातवां बच्चा आंखों की बीमारी से ग्रस्त है। 2007 के एक सर्वे के मुताबिक भारत में 40000 Tread Eye Specialist की आवश्यकता थी, जबकि उस समय देश में केवल 8000 डॉक्टर ही थे। इस समय लगभग डाॅक्टरों की संख्या पर्याप्त से कुछ ही कम है।
आंखों की स्वास्थ्यता शरीर की मोटाई या पतलापन पर निर्भर नहीं करती, बल्कि यह शरीर में उपस्थित विटामिंस की मात्रा और वातावरण का आंखों पर प्रभाव पर निर्भर करती है।
आंखों की कुछ प्रमुख बीमारियां:-
1. कार्निया का अल्सर
2. कंप्यूटर विजन सिंड्रोम
3. मोतियाबिंद
4. दृष्टि दोष (निकट, दूर या जरादृष्टि दोष)
5. समलबाई या ग्लूकोमा
6. डायबीटिक रेटिनोपैथी
7. एलर्जी या कंजेक्टिवाइटिस
8. आँखों में रोहें (दर्दनाक फुंसी)
9. रतौंधी ।
आंखों की कुछ प्रमुख बीमारियों के लक्षण:-
1. रोशनी का कम होना या कम दिखाई देना,
2. समलबाई और डायबीटिक रेटिनोपैथी में तो कम दिखने के लक्षण में तीव्र वृद्धि,
3. डबल दृष्टि,
4. अचानक सितारे या चमकीली वस्तु दिखने लगना (कमजोरी के कारण),
5. आंखों में जलन,
6. आंखों से पानी गिरना,
7. धूप में अधिक चमक महसूस होना,
8. सिर में दर्द बना रहना,
9. मानसिक परिश्रम या पढ़ाई करते समय अधिक नींद आना या अन्य उपरोक्त नेत्र कष्ट।
आंखों की कुछ प्रमुख बीमारियों का कारण:-
1. अपौष्टिक आहार के सेवन से शरीर में विटामिन्स (Vitamins) की कमी,
2. शरीर की आवश्यकता से अधिक कार्य करना व आंखों को विश्राम कम देना,
3. शरीर की अस्वच्छता,
4. हानिकारक विकिरणों (UV Rays, etc.) का दुष्प्रभाव।
आंखों की बीमारियों से बचाव:-
1. भोजन में हरी सब्जियों और सलाद का प्रयोग तथा फल का प्रयोग अधिक मात्रा में करें।
2. मधुमेह और ब्लड प्रेशर के मरीज इसे नियंत्रित रखने के उपाय के साथ-साथ नियमित जांच कराते रहें।
3. धूप में निकलने से पहले धूपरोधी चश्मा पहनें।
4. सभी उम्र के लोगों को साल में एक बार आंखों की स्क्रीनिंग जरूर कराना चाहिए। 3 साल से अधिक उम्र के बच्चों की स्क्रीनिंग करा सकते हैं। 3 साल से कम उम्र के बच्चों के आंखों की स्क्रीनिंग नहीं कराना चाहिए।
5. कंप्यूटर व स्मार्टफोन स्क्रीन पर एंटी ग्लेयर स्क्रीन का प्रयोग करें और उपयोग करते समय रेडिएशन रोधी चश्मा अवश्य पहनें।
6. बच्चों को विटामिन ए युक्त पोषक भोज्य पदार्थ खिलाएँ।
7. कंप्यूटर पर काम करते समय आंखों की पलकों को बार-बार बंद करने की आदत डालें या लगातार डिजिटल डिस्प्ले पर ना देखें।
8. प्रतिदिन सुबह-शाम दो तीन बार ताजे पानी से आंखों को धोएँ।
9. आंखों को पर्याप्त विश्राम दें, या पर्याप्त नींद लें।
अल्ट्रावायलेट (UV) किरण का ऑंखों पर प्रभाव
आंखों की सुरक्षा विशेष रूप से सूर्य की हानिकारक किरणों से भी करना चाहिए, क्योंकि जहां सूर्य की कुछ किरणें शरीर में विटामिन-डी का निर्माण करती हैं, तो पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) किरण की अधिक मात्रा शरीर को नुकसान पहुंचाती है। पारा चढ़ने या दिन का मध्य भाग आने के साथ ही सूरज की किरणें त्वचा को झूलसाने लगती हैं। इससे सन-बर्न होता है, साथ ही शरीर को कई और तरह के नुकसान उठाने पड़ते हैं। इसलिए सूर्य की घातक किरणों के बारे में पूरी जानकारी रखना भी आवश्यक है, जो आपको असमय में मोतियाबिंद, मुंह के छाले और आंखों की अनेक समस्याओं व असमय बुढ़ापा से बचाएगी।
वैज्ञानिक शोध के अनुसार, सूरज की तेज किरणों में बहुत ज्यादा समय तक रहना मोतियाबिंद का कारण होता है। यह muscular d-generation कि ऐसी स्थिति है जिसे पट्रेजियम कहते हैं, तथा जिनमें आंखों के सफेद हिस्सों में पीले-पीले धब्बे से हो जाते हैं। ज्यादा देर तक सूरज की तेज किरणों में रहने के कारण आंखों में मेलानोमा का अधिक विकास होता है। इसलिए तेज धूप में घर से निकलने से पहले अच्छी कंपनी के सन ग्लासेस जो कि अल्ट्रावायलेट प्रोटेक्शन वाले हों, को पहनकर घर से बाहर चाहिए।
अल्ट्रावायलेट (UV) किरण का त्वचा पर प्रभाव
सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों में आपकी त्वचा की लचीलापन को ढीला करने का गुण होता है, इसे त्वचा में झुर्रियां दिखने लगती है, जो सिलवटों का रूप ले लेती हैं। इससे व्यक्ति में समय से पहले ही बुढ़ापे जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। यह त्वचा को नुकसान पहुंचने के साथ-साथ उसकी चमक को भी बहुत कम कर देती है। ये डार्क स्पॉट्स (काले धब्बों के बनने) का कारण भी बनते हैं।
ऐसे में सनब्लॉक्स पहनने और सूरज की तेज किरणों से बचाने वाले कपड़े जैसे कि सफेद वस्त्र पहने से इसकी किरणों से होने वाले नुकसान को अधिक कम किया जा सकता है। सूरज की किरणों के कारण सन डैमेज होना आम बात है, यानी प्रतिदिन लंबे समय तक यदि व्यक्ति सूरज की किरणों को सहता है तो यह आपकी त्वचा के सेल्स (कोशिकाओं) के DNA की क्षति का कारण भी बन सकता है। ऐसे में या तो ये कोशिकाएं खत्म हो जाती हैं या फिर अपने मैकेनिक सिस्टम के द्वारा रिपेयर हो जाती हैं या उत्परिवर्तित हो जाती हैं। यदि नुकसान बहुत ज्यादा गंभीर होता है तो कोशिकाएं इन्हें पर्याप्त रूप से रिपेयर नहीं कर पाती और यह स्किन कैंसर (त्वचा कैंसर) के रूप में प्रकट होने लगते हैं।
बहुत ज्यादा देर तक सूरज की किरणों को झेलते रहने का नकारात्मक असर इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा तंत्र) पर भी पड़ता है, जो बीमारियों से लड़ने वाला और हमारे शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली है। अल्ट्रावायलेट किरणें बैक्टीरियल एजेंट से प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर देती है और संक्रमण का खतरा बढ़ा देती हैं।
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