
क्या महर्षि वाल्मीकि शूद्र थे ?
प्रिय पाठक ! महर्षि वाल्मीकि जी को कुछ वामपंथी लोग और कुछ हिन्दू लोग भी शूद्र/निम्न जाति का बतलाते हैं, तो रही बात महर्षि वाल्मीकि के शूद्र होने की, तो वास्तव में महर्षि वाल्मीकि शूद्र नहीं थे।
वह ब्रह्मर्षि प्रचेता, जिन्हें वरुण भी कहा जाता है, उनके दसवें पुत्र थे, अतः महर्षि वाल्मीकि ब्राह्मण थे, और यह उन्होंने रामायण (उत्तरकांड 96 सर्ग, 19, 20, 21, 22 वें श्लोक) में स्वयं माना है। स्कंद पुराण के वैशाखमाहात्म्य में इन्हें जन्मांतर का व्याध बतलाया गया है।
ब्रह्मर्षि प्रचेता (वरुण) स्वयं 17 प्रजापतियों में से एक हैं। वे 17 प्रजापति इस प्रकार हैं- कर्दम, विकृत, शेष, संश्रय, बहुपुत्र, स्थाणु, मरीचि, अत्रि, क्रतु, पुलस्त्य, अंगिरा, प्रचेता (वरुण), पुलह, दक्ष, विवस्वान्, अरिष्टनेमि, और कश्यप जी हैं। (रामायण, अरण्यकाण्ड, 14वां सर्ग, 6, 7, 8, 9वां श्लोक)
यह (महर्षि वाल्मीकि) बचपन में अज्ञानी थे और युवावस्था में कुसंगति वश ब्राह्मण धर्म का पालन नहीं कर रहे थे तथा लुटेरों का काम कर रहे थे। नारद जी के कहने पर सप्तर्षियों ने आकर उन्हें उनके जीवन का लक्ष्य समझाया और ज्ञान की बात समझाने का प्रयास किया, लेकिन पाप के कारण वे 'राम' शब्द का उल्टा 'मरा' ही कह पा रहे थे; लेकिन बार-बार मरा-मरा कहते कहते उनमें भक्ति और ज्ञान प्रकाशित हुआ, फिर उन्होंने कुछ विद्याध्ययन किया और फिर कठिन तपस्या करने लगे और तपस्या करते करते उनके शरीर पर दीमकों ने बाॅंबी बना लिया, जिससे उनका नाम वाल्मीकि पड़ा।
फिर तपस्या के उपरांत वे बहेलिया द्वारा पक्षी को मारा जाना देखकर उन्होंने क्रोध व करुणा वश अपना प्रथम श्लोक रचा और उसी श्लोक के माध्यम से उन्होंने बहेलिया को श्राप भी दिया। वह श्लोक इस प्रकार है -
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥
अर्थ : हे दुष्ट, तुमने प्रेम में मग्न क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।
फिर उसके बाद उन्होंने पवित्र ग्रन्थ रामायण की रचना की। भगवान विष्णुजी के रामावतार के समय महर्षि वाल्मीकि उपस्थित थे।
अतः महर्षि वाल्मीकि को शूद्र मानना सर्वथा भ्रम है।

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