
भ्रष्टाचार [Corruption]
हमारे भारत देश में ही नहीं, बल्कि लगभग पूरी दुनिया में भ्रष्टाचार दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। लेकिन हम भारत के नागरिक हैं, अतः हम इस लेख में सर्वप्रथम भारत में भ्रष्टाचार के व्यापक क्षेत्रों, भ्रष्टाचार का कारण और उसके निवारण पर चर्चा करेंगे।
लोग बहुत तेजी से सुखी होने के बजाय, दिन प्रतिदिन दुखी ही होते जा रहे हैं, जिसका प्रभाव अपने ऊपर या सभी के ऊपर भी पढ़ रहा है और हमारे आने वाली पीढ़ियों पर भी पड़ेगा। भ्रष्टाचार एक व्यापक सामाजिक समस्या है, जिसके सुधार व समाप्ति के लिए राजनीतिक शक्ति या प्रशासन भी कुछ नहीं कर पा रहा है। अधिकांश पदासीन लोग अपने-अपने कुर्सी के चक्कर में हैं, कोई भी भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लगाना चाह रहा है, अतः समाज में रहने के नाते हमारा या सभी का यह दायित्व है कि हम और आप सभी लोग भ्रष्टाचार के निवारण के लिए अपना सहयोग करें। हम भ्रष्टाचार के निवारण के लिए क्या कर सकते हैं ?
भ्रष्टाचार क्या है ? भ्रष्टाचार का स्वरूप क्या है ? भ्रष्टाचार क्यों बढ़ता जा रहा है ? भ्रष्टाचार का प्रमुख और मूल कारण क्या है ? अतः इन सब प्रश्नों के उत्तर और भ्रष्टाचार के मूल कारण का पता चलने पर ही उसके निवारण का उपाय खोजा जा सकता है।
भ्रष्टाचार का अर्थ
भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है- भ्रष्ट आचार, अथवा आचार और विचार का बिगड़ जाना, अर्थात् बिना नियम के आचरण करना या मनमाना आचरण करना। मनमाना आचरण का मतलब- जिसे जो भाता है, जो मन को अच्छा लगता है वह करता है, उसके दूरगामी परिणाम पर ध्यान नहीं देता। भ्रष्टाचार (बुरी आदत) का क्षेत्र व्यापक है और यह लगभग हर क्षेत्र में अपना प्रभाव जमाये हुए है।
भ्रष्टाचार में लिप्त लोग या भ्रष्टाचारी लोग अपने मतलब की सोचते हैं, स्वार्थी जैसा बर्ताव करते हैं, किस कार्य का क्या अच्छा-क्या बुरा परिणाम होगा, इस पर ध्यान नहीं देते। देश पर, समाज पर, अपने पर व अपनी आने वाली पीढ़ियों पर तथा साथ ही साथ अपने व्यवहार, आचरण, पर्यावरण पर, परिवेश पर क्या प्रभाव पड़ेगा; इस बात को भ्रष्ट आचरण वाले लोग नहीं सोचते हैं या बुरा परिणाम जानते हुए भी अपने निजी स्वार्थ के लिए अच्छे नियमों का उल्लंघन करते हैं। इसी का परिणाम है कि आज हमारे देश में राष्ट्रीय, सामाजिक, पारिवारिक, शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।
वास्तव में भ्रष्ट आचरण; पाप का पर्यायवाची है और उत्तम आचरण ही सदाचार या पुण्य का पर्यायवाची है।
भ्रष्टाचार का कारण
अब हम सभी को इस बात को खोजना है कि यह मनुष्य पाप (भ्रष्टाचार) क्यों करता है ?
श्रीमद्भागवत गीता में यही प्रश्न अर्जुन, भगवान श्रीकृष्ण से पूछते हैं, तब भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि "अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए मनुष्य न चाहता हुआ भी पाप का आचरण करता है, क्योंकि मनुष्य की इच्छाएं कभी समाप्त नहीं होने वाली है। एक इच्छा की पूर्ति होने पर दूसरी इच्छा उठ खड़ी होती है। जिस प्रकार धुआं से अग्नि ढंकी रहती है और जेर से गर्भ ढका रहता है, उसी प्रकार इन इच्छाओं के द्वारा मनुष्य का ज्ञान भी ढका रहता है। इसी कारण मनुष्य अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए उल्टा-सीधा, हर प्रकार का उपाय अपनाने लगता है और सद्बुद्धि के अभाव में अपने आचरण से भ्रष्ट होता जाता है।"
अब यह प्रश्न उठता है कि क्या मनुष्य अपनी इच्छाओं को पूरा ना करें या अपनी इच्छाओं को कैसे पूरा करें ?
तो इसका सीधा उत्तर यह है कि मनुष्य अपनी इच्छाओं को अवश्य पूरा करें, लेकिन अपनी इच्छाओं के साथ-साथ दूसरों की इच्छाओं पर भी ध्यान दें तथा इस बात पर भी ध्यान दें कि अपनी इच्छा पूर्ति के लिए हम जो कार्य कर रहे हैं उसका हमारे देश, समाज, परिवार, अपने व अपने आने वाली पीढ़ियों पर तथा पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इस प्रकार ध्यान देने के लिए हमें सुशिक्षित और संयमी होना होगा। हमें केवल अपने मन की ही ना सुन करके बुद्धि से भी काम लेना होगा और सब के साथ आत्मवत् व्यवहार करना होगा अर्थात् जैसा आचरण हम अपने प्रति सोचते हैं, वैसा ही आचरण दूसरों के प्रति करें। तब जाकर हम एक सुंदर समाज का निर्माण कर सकते हैं।
अतः सुंदर समाज के निर्माण के लिए देश में उत्तम शिक्षा देने की जरूरत है। आज जो यह कहा जाता है कि हमारे देश में अधिकांश जनता (70%) शिक्षित है, तो मैं पूछता हूं कि जब शिक्षित है, तो भ्रष्टाचार क्यों दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है ? जनता दिनों दिन क्यों अनेक प्रकार के कष्टों व समस्याओं से ग्रस्त होते जा रही है ?
इसका कारण या उत्तर यह है कि जनता शिक्षित तो है, लेकिन कुशिक्षित है, सुशिक्षित नहीं है। आज अधिकांश जनता कुशिक्षित है, सुशिक्षितों की संख्या बहुत ही अल्प है या अत्यल्प है और इन सुशिक्षितों के कारण ही देश और समाज में कुछ अमन-चैन कायम है।
भ्रष्टाचार के वे व्यापक क्षेत्र, जिन पर मानवता को शर्मसार करने वाले लेख लिखे जाएंगे:-
👉 शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार
👉 चिकित्सा क्षेत्र में भ्रष्टाचार
👉 नौकरी में भ्रष्टाचार
👉 खर्चा में भ्रष्टाचार
👉 नौकरी देने में भ्रष्टाचार
👉 सेवा में भ्रष्टाचार
👉 खेती में भ्रष्टाचार
👉 पूजा-पाठ में भ्रष्टाचार
👉 बातचीत में भ्रष्टाचार
👉 खिलाने पिलाने में भ्रष्टाचार
👉 पहनावे में भ्रष्टाचार
👉 खान-पान में भ्रष्टाचार
👉 रिश्तों में भ्रष्टाचार
👉 शादी-विवाह में भ्रष्टाचार
👉 व्यापार में भ्रष्टाचार
👉 पशुपालन में भ्रष्टाचार
👉 वस्तु निर्माण में भ्रष्टाचार
👉 निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार
👉 दान देने में भ्रष्टाचार
👉 देश रक्षा में भ्रष्टाचार
👉 दैनिक कार्यों जैसे सोना, जागना, शौच, दातुन, स्नान, संध्या-वंदन आदि में भ्रष्टाचार
👉 यात्रा में भ्रष्टाचार
👉 तीर्थों में भ्रष्टाचार
👉 लिखने-पढ़ने में भ्रष्टाचार
👉 नौकरी करने में भ्रष्टाचार
👉 संगीत में भ्रष्टाचार
👉 फिल्मों में भ्रष्टाचार
👉 खेलों में भ्रष्टाचार
👉 दूरसंचार में भ्रष्टाचार
👉 वाहन चलाने में भ्रष्टाचार
👉 धर्म पालन में भ्रष्टाचार
👉 उत्सव-पर्व में भ्रष्टाचार
👉 सफाई-स्वच्छता में भ्रष्टाचार
👉 कथा-कीर्तन में भ्रष्टाचार
👉 भोजन निर्माण में भ्रष्टाचार
👉 आयात निर्यात में भ्रष्टाचार
👉 विद्युत सप्लाई में भ्रष्टाचार
👉 जल सप्लाई में भ्रष्टाचार
👉 खाद्य आपूर्ति में भ्रष्टाचार
👉 शासन करने में भ्रष्टाचार
👉 चुनाव में भ्रष्टाचार
👉 प्रकाशन में भ्रष्टाचार
👉 कंपनियों में भ्रष्टाचार
👉 प्रबंधन में भ्रष्टाचार; आदि भ्रष्टाचार के व्यापक क्षेत्र हैं।

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