
जिन्नावाद क्या था ? क्या जिन्नावाद सही था ? हाॅं - "जिन्नावाद" सही था ?
मोहम्मद अली जिन्ना (Mohammad Ali Jinnah) कौन था ?
मोहम्मद अली जिन्ना (उर्दू: محمد علی جناح, जन्म: 25 दिसम्बर 1876 मृत्यु: 11 सितम्बर 1948) बीसवीं सदी का एक प्रमुख राजनीतिज्ञ था, जिन्हें पाकिस्तान के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। वह मुस्लिम लीग का नेता था, जो आगे चलकर पाकिस्तान का पहला प्रधानमंत्री बना। पाकिस्तान में, उसे आधिकारिक रूप से क़ायदे-आज़म यानी महान नेता और बाबा-ए-क़ौम यानी राष्ट्रपिता के नाम से नवाजा जाता है।
राजनीतिक कार्यों में अतिव्यस्तता के चलते उनका निजी जीवन, विशेषकर उनका वैवाहिक जीवन प्रभावित हुआ। हालांकि उन्होंने अपने वैवाहिक जीवन को बचाने के लिए यूरोप की यात्रा भी की, लेकिन 1927 में पति और पत्नी अलग हो गये। 1929 में उनकी पत्नी की गम्भीर बीमारी के बाद मौत हो गयी, जिसके बाद जिन्ना बेहद दुखी रहने लगे।
मोहम्मद अली जिन्ना का पाकिस्तान निर्माण में भूमिका
भारतीय राजनीति में मोहम्मद अली जिन्ना का उदय सन् 1916 में कांग्रेस के एक नेता के रूप में हुआ था, जिन्होने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर देते हुए मुस्लिम लीग के साथ लखनऊ समझौता करवाया था। लेकिन साथ-साथ मोहम्मद अली जिन्ना यह भी जानता था कि मुसलमानों का धर्म ऐसा है कि हिंदू और मुसलमान साथ-साथ नहीं रह सकते।
लाहौर प्रस्ताव के तहत मोहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र का लक्ष्य निर्धारित किया। 1946 में ज्यादातर मुस्लिम सीटों पर मुस्लिम लीग की जीत हुई और मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की आजादी के लिए त्वरित कार्यवाही का अभियान शुरू कर दिया।
मुस्लिम लीग और कांग्रेस पार्टी, गठबन्धन की सरकार बनाने में असफल रहे, इसलिए अंग्रेजों ने भारत विभाजन को मंजूरी दे दी। पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री के रूप में मोहम्मद अली जिन्ना ने लाखों शरणार्थियों (भारतीय मुसलमानों) के पुनर्वास के लिए बहुत प्रयास किया, लेकिन, मुस्लिम लीग के अनेक नेता, भारत के राष्ट्रपिता कहलाने वाले महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना अब्बुल कलाम आजाद और अन्य कांग्रेसी नेताओं ने भारत से पाकिस्तान के लिए मुसलमानों का प्रवास नहीं होने दिया या भारत से मुसलमानों को पाकिस्तान में नहीं जाने दिया और भारत को सदा के लिए एक विषैले संकट में डाल दिया।
हालांकि सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसका विरोध किया और कहा कि, जिन मुसलमानों ने पाकिस्तान निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की वह भारत से पाकिस्तान में क्यों नहीं जाते ? क्या वे रातों-रात भारत के लिए देशभक्त हो जाएंगे?
साथ ही, मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने देश (पाकिस्तान) की विदेश नीति, सुरक्षा नीति और आर्थिक नीति बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
मोहम्मद अली जिन्ना के 9 महत्वपूर्ण विचार
मोहम्मद अली जिन्ना का कांग्रेस से मतभेद उसी समय शुरू हो गये थे, जब 1918 में भारतीय राजनीति में गाॅंधी जी का आगमन हुआ।
1. गाॅंधी जी के अनुसार, सत्य, अहिंसा और सविनय अवज्ञा से स्वतन्त्रता और स्वशासन पाया जा सकता है, जबकि जिन्ना का मत उनसे अलग था। मोहम्मद अली जिन्ना का मानना था कि सिर्फ संवैधानिक संघर्ष से ही आजादी पाई जा सकती है।
2. गाॅंधी जी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया था, जबकि जिन्ना ने इसका खुलकर विरोध किया था।
3. 1920 में मोहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि गाॅंधी जी के जन संघर्ष का सिद्धांत हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच विभाजन को बढ़ायेगा, न की कम करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि यदि हिंदू और मुस्लिम साथ - साथ रहेंगे तो, दोनों समुदायों (हिंदू-मुस्लिम) के बीच जबरदस्त झगड़ा पैदा होगा।
4. मुस्लिम लीग पार्टी का अध्यक्ष बनते ही मोहम्मद अली जिन्ना ने कांग्रेस और ब्रिटिश समर्थकों के बीच विभाजन रेखा खींच दी थी।
5. 1923 में जिन्ना मुंबई से सेण्ट्रल लेजिस्लेटिव असेम्बली के सदस्य चुने गये। एक कानून निर्माता के रूप में उन्होंने स्वराज पार्टी को मजबूती प्रदान की। 1925 में लॉर्ड रीडिग ने उन्हें नाइटहुड की उपाधि भी दी।
6. 1927 में साइमन कमीशन के विरोध के समय उन्होंने संविधान के भावी स्वरूप पर हिन्दू और मुस्लिम नेताओं से बातचीत की। लीग के नेता ने पृथक चुनाव क्षेत्र की माँग की, जबकि नेहरू रिपोर्ट में संयुक्त रूप से चुनाव लड़ने की बात कही गयी। बाद में दोनों में समझौता हो गया, जिसे जिन्ना के चौदह सूत्र के नाम से जाना जाता है। हालांकि इसे कांग्रेस और दूसरी राजनीतिक पार्टियों ने बाद में खारिज कर दिया।
7. उन्हें भारतीय मुसलमानों के अधिकारों को लेकर काफी चिन्ताएं सता रहीं थीं। लन्दन में गोलमेज सम्मेलन के भंग होने का भी उन्हें दुःख था। वे लन्दन में रुक गये। इस दौरान वे अल्लामा इकबाल से जुड़कर विभिन्न मुद्दों पर काम भी करते रहे। 1934 में वे भारत लौटे और मुस्लिम लीग का पुनर्गठन किया।
8. आजादी के समय मोहम्मद अली जिन्ना पूरे भारत में घूम घूम कर भाषण दे रहे थे। कांग्रेस के साथ वार्ता विफल होने के बाद जिन्ना को भी यह विचार आया कि मुसलमानों को अपने अधिकारों की रक्षा के लिए एक अलग देश मिलना ही चाहिए, बिना इसके काम नहीं बनेगा। आगे चलकर जिन्ना का यह विचार बिल्कुल पक्का हो गया कि हिन्दू और मुसलमान दोनों अलग-अलग देश के नागरिक हों, अत: उन्हें अलग कर दिया जाये। उनका यही विचार बाद में जाकर जिन्ना का द्विराष्ट्रवाद का सिद्धान्त कहलाया।
9. जिन्ना ने कहा कि, यदि मुसलमानों को अलग न किया जाए तो अन्त में गृहयुद्ध फैल जायेगा। यह बात जिन्ना ने इकबाल के साथ पत्राचार में भी उठायी। 1940 के लाहौर अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित कर यह कहा गया कि मुस्लिम लीग का मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान का निर्माण है।
कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। मौलाना अब्बुल कलाम आजाद जैसे नेताओं और जमाते-इस्लामी जैसे संगठनों ने इसकी कड़ी निन्दा भी की। 26 जुलाई 1943 को उग्रवादियों के हमले में जिन्ना घायल हो गये। जिन्ना ने 1941 में डॉन समाचार पत्र की स्थापना की, जिसके द्वारा उन्होंने अपने विचार का प्रचार-प्रसार किया।
हिन्दू - मुस्लिम एकता को बिगाड़ने में कुरान की भूमिका
1. कुरान में लिखा है 'मूर्ति पूजकों' को जहाँ पाओ कत्ल कर दो-
कुरान सूरा 9 अत-तौब़:, आयत 5 में मूर्ति पूजने वालों के लिए यह लिखा गया है कि "जब मुहर्रम के महीने बीत जाएँ, तो मुश्रिकों (मूर्तिपूजकों) को जहाँ कहीं पाओ उन्हें मार डालो, और उसकी बदनामी करो, इसी के साथ हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो और उनका कत्ल करो। जहाँ कहीं भी मूर्ति पूजक मिले उन्हें मार दो। यदि वे प्रायश्चित करें और नमाज कायम करें और ज़कात अदा करें तो उनका रास्ता छोड़ दो। निसंदेह अल्लाह बहुत क्षमा करने वाला और बार-बार दया करने वाला है।"
2. कुरान में लिखा है "काफ़िरों (गैर-मुस्लिमों) से लड़ो" -
3. कुरान में लिखा है "काफ़िरों व मुनाफ़िक़ों के साथ जिहाद करो" -
4. कुरान सूरा 66, आयत 10 में लिखा हुआ है
"हे नबी! काफिरों और मुनाफ़िक़ों से जिहाद कर और उनके विरुद्ध कठोरता अपना और उनका ठिकाना नरक है और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है।"
5. कुरान सूरा 2 आयत 191, 192, 193, 194, 195 में काफ़िरों के प्रति नफरत, धर्मान्तरण इत्यादि लिखा है।
6. कुरान सूरा 26, आयत 92,93, 94 व 95 में लिखा हुआ है कि
" नरक को पदभ्रष्टों के सामने ला खड़ा किया जाएगा और उनसे कहा जाएगा वे कहां है जिनकी तुम उपासना किया करते थे। अल्लाह के सिवा, क्या वे तुम्हारी सहायता कर सकते हैं अथवा अपना प्रतिशोध ले सकते हैं। अतः वे और अवज्ञाकारी लोग भी उसमें औंधे गिरा दिए जाएंगे।"
7. कुरान में लिखा है "मुश्रिक (मूर्तिपूजक) तो अपवित्र है" -
कुरान सूरा 9 आयत 28 में लिखा है कि "हे वे लोगो जो ईमान लाए हो! मुश्रिक तो अपवित्र हैं। अतः वे अपने इस वर्ष के बाद मस्जिद-ए-हराम के निकट ना फटकें। और यदि तुम्हें निर्धनता का भय हो तो यदि अल्लाह चाहे तो तुम्हें अपनी कृपा के साथ धनवान बना देगा। निस्संदेह अल्लाह स्थायी ज्ञान रखने वाला और परम विवेकशील है।''
क्या सीखेंगे कुरान पढ़ने वाले बच्चे व लोग
कुरान की आयतें जब दंगे, लड़ाई, झगड़े को भड़काती है तो सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिन बच्चों को बचपन से कुरान पढ़ने के लिए कहा जाता है वह क्या सीखेंगे...? कुरान में मूर्तिपूजकों व काफ़िरों को मारने के बारे में लिखा है तो इस तरह तो मुस्लिम बच्चे कभी मूर्तिपूजकों व काफ़िरों (गैर मुस्लिमोंं) से बात ही नहीं करेंगे क्योंकि बचपन से मूर्तिपूजकों व काफ़िरों के लिए उनके मन में केवल नफरत होगी। जिस तरह कुरान में लिखा है 'वह (मूर्तिपूजक) जहाँ मिल जाए उनका कत्ल कर दो।' इन बातों को अगर बच्चे अपने मन में बचपन से बैठा लेंगे तो वह बड़े होकर दंगे, लड़ाई, झगड़े का ही हिस्सा बनेंगे ना कि शान्ति का समर्थन करेंगे।
आजादी के बाद से भारत में 99% मुस्लिम बच्चों को शुरू में मदरसों की शिक्षा दी जाती है और मदरसों को सरकारी आय भी प्राप्त होती है लेकिन गुरुकुल शिक्षा का कहीं भी नामोनिशान नहीं है।
आप खुद सोचिये और बताइए कि क्या यह सही है...? आप ये कुछ विडियो देख लें-
कब तक चलती है हिन्दू - मुस्लिम एकता ?
हिन्दू - मुस्लिम एकता बिगाड़ने में उकसाने वाले लोग:-

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Correct
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