
गणेश चतुर्थी या संकष्टचतुर्थी की पूरी जानकारी:-
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन गणों के अधिनायक गणपति देव की यथा विधि पूजा - अर्चना करने से महान फल की प्राप्ति होती है।
कृष्ण (चंद्रोदय व्यापिनी पूर्व विद्धा) चतुर्थी को गणपति - स्मरण पूर्वक प्रात स्नानादि नित्य कर्म करने के उपरांत 'मम सकलाभीष्टसिद्धये चतुर्थी व्रतं करिष्ये' इस प्रकार संकल्प करके, भगवत्पूजन करके, दिन भर मौन रहकर, रात्रि में पुन: स्नान करके विशिष्ट गणपति - पूजन के पश्चात चंद्रोदय के बाद चंद्रमा का पूजन व अर्घ्य देकर फिर भोजन करने से यह व्रत पूर्ण होता है। इसकी सारी विधि इस प्रकार है-
→ सर्वप्रथम पूजन की समस्त प्रारम्भिक क्रियाओं को सम्पन्न करें।
→ पूजा में प्रयुक्त होने वाला प्रणव से युक्त मूल मंत्र-
→ गणेश जी की पूजा में अंगन्यास इस प्रकार करना चाहिए-
ॐ ग्लौं ग्लां हृदयाय नमः मन्त्र बोलते हुए (दाहिने हाथ की पांचों अंगुलियों से हृदय का स्पर्श)
ॐ गां गीं गूं शिरसे स्वाहा मन्त्र बोलते हुए (सिर का स्पर्श)
ॐ ह्रूं ह्रीं ह्रीं शिखायै वषट् मन्त्र बोलते हुए (शिखा का स्पर्श)
ॐ गूं कवचाय वर्मणे हुम् मन्त्र बोलते हुए (दाहिने हाथ की अंगुलियों से बाएं कंधे का और बाएं हाथ की अंगुलियों से दाहिने कंधे का स्पर्श)
ॐ गौं नेत्रत्राय वौषट् मन्त्र बोलते हुए (दाहिने हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों और ललाट के मध्य भाग का स्पर्श)
ॐ गों अस्त्राय फट् मन्त्र बोलते हुए (यह वाक्य पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बाई ओर से पीछे की ओर ले जाकर दाहिने ओर से आगे की ओर ले आए और तर्जनी तथा मध्यमा उंगलियों से बाएं हाथ की हथेली पर ताली बजाए) ।
→ गणपति आवाहन के लिए निम्नलिखित मंत्र का प्रयोग करना चाहिए-
आगच्छोल्काय गन्धोल्क: पुष्पोल्को धूपकोल्कक:।
दीपोल्काय महोल्काय बलिश्र्चाथ विसर्जनम् ।।
→ आवाहन के पश्चात गायत्री मंत्र से करन्यास करना चाहिए। वह मंत्र इस प्रकार है-
→ ध्यान -
→ अब श्रद्धा पूर्वक ॐ गणाय नम:, ॐ गणपतये नम:, ॐ कूष्मांडाय नम: मन्त्रों द्वारा श्री गणेश जी की ससामर्थ्य दूर्वा, हल्दी, तिल, चन्दन, लड्डू इत्यादि का प्रयोग करते हुए पंचोपचार, दसोपचार या षोडशोपचार पूजन करें।
→ फिर सामर्थ्य के अनुसार अमोघोल्क, एकदन्त, त्रिपुरान्तकरूप, श्यामदन्त, विकरालास्य, आहवेष और पद्मदंष्ट्रा नामक प्रमुख गणों की भी पूजा करें।
→ अब अमोघोल्क, एकदन्त, त्रिपुरान्तकरूप, श्यामदन्त, विकरालास्य, आहवेष और पद्मदंष्ट्रा नामक प्रमुख गणों के अन्त में नम: और स्वाहा शब्द लगाकर इन्हें भी आहुति प्रदान करें और इच्छानुसार सभी देवी - देवताओं को आहुति प्रदान करें।
गणेश जी के जप का मूल मंत्र-

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