
मजबूत पाचन तंत्र की आवश्यकता:-
हमारा स्वास्थ्य पाचन तंत्र एक की सक्रियता पर ही निर्भर है। हमारी भारतीय संस्कृति का आयुर्वेद तंत्र दिनचर्या और ऋतुचर्या पर विशेष ध्यान देने पर जोर देता है, लेकिन हम अपनी व्यस्तता के कारण इसकी अनदेखी कर देते हैं। आयुर्वेद में हर ऋतु के लिए अलग-अलग आहार निश्चित है, यानी मौसम बदलते ही आहार में बदलाव का ध्यान रखना जरूरी होता है अन्यथा वह आहार हमारे शरीर की प्रकृति के हिसाब से लाभदायक सिद्ध नहीं होगा; जिसका सीधा असर हमारे पाचन शक्ति पर पड़ जाता है। मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा और फैटी लीवर जैसी अनेक बीमारियां इसी पाचन तंत्र के विकार का परिणाम होती हैं। आयुर्वेदिक मतानुसार, खराब पाचन क्रिया ही हमारे सभी रोगों का कारण होता है।
हमारे शरीर के पाचन तंत्र की अग्नि को जठराग्नि कहा जाता है। इस अग्नि तत्व के चार प्रकार हैं- तीक्ष्ण, मंद, सम और विषम।
तीक्ष्ण पाचन अग्नि वाला व्यक्ति किसी भी तरह के गरिष्ठ (भारी) भोजन को पचा लेता है परन्तु उसके शरीर का विकास ठीक से नहीं होता। मंद पाचन अग्नि वाले व्यक्ति का पाचन तंत्र बहुत कमजोर होता है और वह अक्सर कब्ज आदि रोगों से हमेशा पीड़ित रहता है। वहीं विषम पाचन अग्नि वाले व्यक्ति को भूख कभी कम तो कभी अधिक लगती है या भूख कम लगने की समस्या होती है।सम पाचन अग्नि वाले व्यक्ति को अच्छा माना जाता है।
हम जो भी खाते - पीते हैं उससे आहार रस बनता है और इसी से हमारे सभी अंगों को पोषण मिलता है। यदि हमारी पाचन अग्नि सम नहीं है तो हम जो कुछ भी खाएंगे वह ठीक से पच कर शरीर में जब्ज नहीं हो पाएगा।
Constipation: कब्ज (कोष्ठबद्धता) के लक्षण:-
कब्ज को तो अनेक रोगों की जननी माना गया है। कब्ज के प्रमुख लक्षण इस प्रकार है-
1. बिल्कुल शौच न होना या कई दिनों तक शौच की इच्छा ही ना होना।
2. इच्छा होने के बाद भी पेट से मल का न निकलना।
3. शौच जाने की बार बार इच्छा।
4. शौच के साथ पेट में किसी कठिन दर्द का न होना परन्तु बार बार शौच के लिए जाना पड़े।
5. बार-बार शौच जाने पर भी थोड़ा-थोड़ा मल निकलना कब्ज का प्रधान लक्षण है।
Constipation: कब्ज (कोष्ठबद्धता) का कारण:-
1. आंतों का मल निकालने की शक्ति का अभाव।
2. भोजन में चिकनाई का अभाव।
3. दूध, दही या छाछ का सेवन न करना।
4. ऐलोपैथिक अथवा किसी अन्य औषधियों का दुष्प्रभाव।
5. पत्तेदार और रेशेदार (फाइबर युक्त) हरी और ताजी सब्जियों व खाद्य पदार्थ का सेवन न करना।
6. जल का कम प्रयोग या पानी कम पीना।
7. मांस- मछली युक्त भोजन का अधिक सेवन।
8. अधिक मिर्च - मसाला का सेवन।
9. शरीर से परिश्रम का कार्य ना लेना।
10. अधिक सोना या अधिक आराम करना।
11. हार्मोंस असन्तुलन।
12. हस्तमैथुन तथा अतिमैथुन।
13. ग्रह और नक्षत्रों की कुदृष्टि इत्यादि कब्ज के प्रधान कारण हैं।
कब्ज (कोष्ठबद्धता) का घरेलू और आयुर्वेदिक उपचार:-
1. यदि आप कब्ज से छुटकारा पाना चाहते हैं तो अपने भोजन को संतुलित करें और उसमें रेशेदार व हरी साग - सब्जी , फलों, दूध - दही इत्यादि की मात्रा को शामिल करें।
2. अपने भोजन में यथेष्ट मात्रा में घी का प्रयोग करें।
3. खजूर का प्रयोग करें। खजूर को दूध में उबालकर रात को सोने से पहले सेवन करें।
5. पका हुआ पपीता या कच्चे पपीते को सब्जी में पका कर भोजन में सेवन करें। पपीता कब्ज की विशेष खाद्य वस्तु है, उसे काटकर उसमें काला नमक डालकर उचित मात्रा में सेवन करें। पपीते के अधिक सेवन से पतले दस्त आने की संभावना बनी रहती है, अतः हानि होने पर इसका प्रयोग बहुत कम करें।
6. रात को सोते समय त्रिफला (आंवला, हर्र, बहेड़ा) का चूर्ण रात में सोने से पहले सेवन करने से कब्ज दूर हो जाती है। लोगों का मत है कि कब्ज की शिकायत में ठंडे पानी से त्रिफला चूर्ण को एक छोटा चम्मच की मात्रा में ठण्डे पानी के साथ लेना चाहिए।
त्रिफला चूर्ण को एक छोटा चम्मच की मात्रा में हल्के गर्म दूध के साथ लेना दिमाग के लिए अधिक उपयोगी होता है।
7. कब्ज की शिकायत दूर करने के लिए पालक की सब्जी भोजन में सेवन करें। जिन लोगों को पथरी की शिकायत है या अंदेशा है, उन्हें पालक का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि पालक में रेत और लौह तत्व अधिक पाए जाते हैं।
8. दूध के साथ ईसबगोल की भूसी का सेवन सर्वोत्तम उपाय है। ईसबगोल में विशेष गुण यह है कि यह आँतों की शुद्धता को दूर कर देता है। आतों की मल निकालने की प्रक्रिया को शक्ति प्रदान करता है। इसका अन्य गुण यह है कि यह किसी भी अंग में उत्तेजना पैदा नहीं करता। जिन्हें कब्ज की पुरानी शिकायत है उन्हें कुछ दिन तक लगातार इसे लेने से कब्ज के कारण दूर हो जाते हैं और मल बंध की शिकायत दूर हो जाती है।
9. सुबह शौच जाने से एक घंटा पहले एक या दो गिलास पानी पीयें। सम्भव हो तो सुषुम या ताजे शुद्ध पानी में नींबू का रस निचोड़ कर लें। चाहे तो उसमें आप आवश्यकतानुसार थोड़ा सा नमक भी मिला सकते हैं।
10. भोजन में साबुत गेहूं का पिसा आटा ही प्रयोग करें। इसका चोकर कब्ज को दूर करने में बहुत सहायता करता है क्योंकि वह फाइबर युक्त होता है। जो लोग बारीक आटे की बनी रोटी या डबल रोटी का सेवन करते हैं, वे लोग कब्ज से कभी भी छुटकारा नहीं पा सकते क्योंकि मैदा या बारीक आटे से बनी हुई वस्तुएं आंतों के साथ चिपक जाती हैं और आंतों की क्रिया में बाधा उत्पन्न करती हैं।
11. सरसों का साग भी कब्ज रोग में बहुत लाभदायक होता है। अतः सरसों के मौसम में सरसों के पत्तों का साग अधिक मात्रा में सेवन करें। यह बहुत स्वादिष्ट भी होता है। इसमें थोड़ा सा मक्खन या घी भी डाल सकते हैं। साथ में मक्के की बनी रोटी खाएं तो और भी अधिक लाभ मिलता है, क्योंकि मक्का का आटा अन्य आटों से अधिक मोटा होने के कारण आंतों में नहीं चिपकता और मल को सावधानीपूर्वक निकालने में सहायता करता है।
12. भिंडी में जो लसदार पदार्थ होता है, वह कब्ज को दूर करने में सहायता करता है। परंतु गुर्दे के रोगों में भिंडी का प्रयोग कदापि ना करें।
13. मौसमी, संतरे का रस या उन्हें प्राकृतिक रूप से ही सेवन करें। इनमें मल के शोधन के बहुत तीव्र गुण होते हैं।
Conclusion :-
प्रिय मित्रों! हमने कब्ज के बारे में विस्तृत जानकारी आपको प्रदान की है। हमें विश्वास है कि आप इस जानकारी का उपयोग करके अपने कब्ज रोग से छुटकारा पाकर आप अनेक रोगों से मुक्ति पा सकते हैं।

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