
रोग क्या हैं (What are diseases):-
शरीर में दूषित पदार्थों का जमा होना ही रोग है। रोग संकेत हैं जो हमें चेतावनी देते हैं कि दूषित पदार्थों ने हमारे शरीर में अपना स्थान बना लिया है, इसलिए हमें सतर्क रहना चाहिए।
रोग का दूसरा नाम शरीर की असामान्य अवस्था भी है।
डॉ. जेस्मीसरगेहमैन के अनुसार - स्वास्थ्य की परिवर्तित अवस्था को रोग कहते हैं।
रोग के कारण (Causes of Disease):-
रोग के मुख्य कारण: दो कारण होते हैं-
[1] बाहरी कारण (वातावरणीय),
[2] आंतरिक कारण (व्यक्तिपरक)
→ शारीरिक धर्म या स्वास्थ्य सिद्धांत और पर्यावरण की स्थिति के खिलाफ व्यवहार बीमारियों के बाहरी कारण हैं।
→ गलत वृत्तियों और हानिकारक व्यवहार, चिंता, बुरी कल्पनाएं, भय आदि रोग के आंतरिक कारण हैं।
चरक के अनुसार, ये तीन प्रकार शारीरिक और मानसिक व्याधियों के कारण हैं - इंद्रियाँ, विषयों का मिथ्या योग, अतियोग।
→ दरअसल हमारे अंदर कुछ आदतें ऐसी होती हैं जो हमें स्वस्थ रहने नहीं देती हैं। इनमें प्रमुख हैं-
(1) खराब भोजन,
(2) आलस्य,
(3) कृत्रिमता का शौक,
(4) अनियमित भोग,
(5) द्वेष,
(6) मानसिक अस्वस्थता,
(7) अप्राकृतिक जीवनयापन,
(8) दूषित पदार्थ,
(9) जीवन शक्ति का नुकसान,
(10) वंशानुगत रोग,
(11) आकस्मिक दुर्घटना,
(12) रोगजनक रोगाणुओं,
(13) आध्यात्मिक कारण,
(14) पोषण की कमी, कुपोषण।
रोगों के प्रकार (Type of Disease):-
स्वास्थ्य की दृष्टि से मानव स्वास्थ्यता के तीन पहलू बताए गए हैं- आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक।
इसलिए स्वस्थ शरीर वही माना जाता है जो आत्मा, मन और शरीर से स्वस्थ हो।
इन तीन पहलुओं के अनुसार, रोग भी मूल रूप से तीन प्रकार के माने जाते हैं - आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक।
मानसिक रोग आध्यात्मिक दुर्बलताओं से उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार मानसिक दुर्बलताओं से शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं। यही तीनों प्रकार की बीमारियों के बीच का संबंध है।
रोगी के कर्तव्य यदि वह समझदार है -
(1) ईश्वर से रोगमुक्त होने की प्रार्थना,
(2) अच्छा आचरण,
(3) मन की शक्ति का उपयोग,
(4) खुश रहने का प्रयास,
(5) मनोरंजन,
(6) अच्छी नींद लेने की कोशिश करना।
रोगी के प्रति डॉक्टर का कर्तव्य:-
1. स्वार्थ और लोभ का त्याग कर रोगी की बीमारी को ठीक करने का एक अधिक बुद्धिमानी के साथ प्रयास,
2. रोगी के साथ शांत और मधुर वाणी का प्रयोग,
3. रोगी के मन में चल रही बात को समझ सकें,
4. नई और पुरानी बीमारियों में अंतर जानना।
रोगी के प्रति परिचारिका (नर्स) के कर्तव्य:-
(1) हर्षित और खुश रहें,
(2) मधुर रहे और मधुर बोलें,
(3) विनोदी रहें।
(4) डॉक्टर के आदेशों का शीघ्र पालन करना।
रोगी के प्रति रोगी के दोस्तों और परिवार के सदस्यों के कर्तव्य:-
(1) रोगी के उपचार में बाधा डालने वाली बात न करें,
(2) रोगी के साथ ऐसा व्यवहार न करें कि रोगी को लगे कि मैं परिवार के लिए बोझ हूँ,
(3) प्रसन्न मन वाले व्यक्ति को रोगी की सेवा करनी चाहिए अथवा प्रसन्न मन से रोगी की सेवा करनी चाहिए।
Conclusion:-
प्रिय पाठकों! मुझे विश्वास है कि आपको रोग के मूल कारण, प्रकार और रोगी के प्रति सभी के कर्तव्यों का हमने वर्णन किया है, जो की आपके लिए ज्ञानवर्धक और लाभदायक सिद्ध होगी। Thank You!

1 टिप्पणियाँ
Nice
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