
जनता की गरीबी और सुख - दुख के प्रति राजा के कुछ कर्तव्य: सम्राट अशोक और बौद्धों की वार्ता :-
यह कहानी उस प्राचीन समय की है जिस समय मगध में सम्राट अशोक का शासन चल रहा था। सम्राट अशोक अपने प्रारंभिक शासन काल में बहुत ही लालची और दान न करने वाला राजा था। वह सिर्फ धन और रत्नों का संग्रह करना चाहता था। वह दान, पुण्य इत्यादि कार्यों को पसंद नहीं करता था।
एक बार सम्राट अशोक ने किसी अन्य देश के राजा के साथ युद्ध किया और उसके राज्य को जीत लिया। उसके जीत का विजयोत्सव मनाया जाने वाला था। उस उत्सव के अवसर पर सम्राट अशोक ने बुद्ध धर्म को अपनाया और बौद्ध भिक्षुओं को प्रवचन करने के लिए बुलाया।
सम्राट अशोक भी बौद्धों का प्रवचन सुनने गए। वहां बौद्धों से प्रभावित होकर सम्राट ने उन सबको भोजन के लिए आमंत्रण दिया। सम्राट के मन में सवाल था कि, बौद्धों ने जो प्रवचन दिया है, वह उनके भी जीवन के लायक है या सिर्फ लोगों को ऊपरी ज्ञान देने तक सीमित है।
बौद्ध सन्तों ने जब महल में पधारा, तब सम्राट ने पूर्ण आदर सत्कार से उनका स्वागत किया और उनको मधुर भोजन अपने ही हाथों से परोसने लगे। बौद्धों ने मिठाई के बदले सिर्फ सादा भोजन ही खाया। भोजन के बाद सम्राट ने बौद्ध सन्तों को अपना पूरा महल घुमाया। आखिर में सम्राट अशोक ने बौद्धों को एक कमरे में ले गए, जो राजा का सबसे बड़ा रत्न भंडार था।
उन रत्नों को दिखाते हुए सम्राट ने कहा- बौद्ध भिक्षुओं! ऐसे अमूल्य रत्न भारत में ही नहीं विश्व में भी अमूल्य हैं।
बौद्ध भिक्षुओं ने कहा- राजन! इससे तो राज्य को बहुत आमदनी होती होगी?
अशोक ने कहा- आमदनी कहाॅं? रत्नों की सुरक्षा के लिए ही बहुत अधिक धन खर्च करना पड़ता है।
तब भिक्षुओं ने कहा- राजन! आपके ही राज्य में इन रत्नों से भी कीमती पत्थर हम लोगों ने देखा है। यदि आप हम लोगों के साथ चलें, तो दिखाते हैं। सम्राट अशोक भिक्षुओं के साथ जाने लगे।
भिक्षुओं ने सम्राट अशोक को उनके ही देश के एक गरीब मोहल्ले में ले गए। वहां एक औरत के घर में ले जाकर उन लोगों ने राजा को आटा पीसने की चक्की के पत्थर को दिखाते हुए कहा- राजन! यह वही अमूल्य पत्थर है।
बौद्ध भिक्षुओं के द्वारा दिये गये ज्ञान में कमी:-
Conclusion:-
उन बौद्ध भिक्षुओं का यह कहना था कि राजन! आप अधिक धन का संग्रह मत करें और अपने जनता के गरीबी पर भी ध्यान दें, ताकि आपकी जनता भी खुशहाल रहें और आपका शासन भी सुव्यवस्थित तरीके से चलता रहे।
महाभारत काल के महात्मा विदुर ने भी कहा है कि, राजा वही अच्छा होता है जो सूर्य की भांति जमीन से पानी को अवशोषित कर लेता है अथवा जनता को अधिक दुख दिए बिना ही कर (tax) को ले लेता है और फिर उस कर के द्वारा अथवा उस जमीन से ग्रहण किए गए पानी के द्वारा बादल बनाकर पृथ्वी पर बरसता है तो धरती हरी भरी और खुशहाल हो जाती है अर्थात् जनता का अच्छी प्रकार भरण पोषण हो जाता है।
इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को भी अपनी आवश्यकता से बहुत अधिक धन संग्रहित नहीं करना चाहिए। अपनी आवश्यकता से अधिक संग्रहित धन को किसी गरीब अथवा जिनको धन की आवश्यकता है उन्हें दे करके उनका भी भरण-पोषण करना चाहिए, ताकि उनका जीवन भी सुख पूर्वक व्यतीत हो सके। केवल अपना ही उल्लू सीधा नहीं करना चाहिए और अपने पैसों से उन गरीबों व रोजगार के योग्य या जरूरतमन्दों को रोजगार भी देना चाहिए जो बेरोजगार बैठे हुए हैं।
हमें विश्वास है कि आप इस कहानी के माध्यम से स्वयं को और अपने प्रिय बच्चों को भी अच्छी शिक्षा दे सकेंगे । Thank you !

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