
कहानी इस प्रकार है --
इस कहानी में महाराज युधिष्ठिर के कुछ प्रश्नों का उत्तर पितामह भीष्म जी कहानी के माध्यम से दे रहे हैं।
युधिष्ठिर ने पूछा ---
पितामह ! जो लोग ब्राम्हणों को दान देने की प्रतिज्ञा करके फिर मोहवश नहीं देते, उनकी क्या गति होती है ?
भीष्म जी ने कहा ---
बेटा ! जो देने की प्रतिज्ञा करके भी नहीं देता, वह जीवन भर जो कुछ होम, दान तथा तप आदि पुण्य कर्म करता है, वह सब नष्ट हो जाता है।
धर्मशास्त्र के विद्वानों का कहना है कि 1000 काले घोड़ों का दान करने पर प्रतिज्ञा भंग के पाप से छुटकारा मिलता है।
इस विषय में सियार और वानर के संवाद रूप एक प्राचीन इतिहास का दृष्टांत दिया जाता है।
पूर्व काल की बात है, एक सियार और वानर एक स्थान पर मिले। ये दोनों पूर्व जन्म में मनुष्य और परस्पर मित्र थे। दूसरी जन्म में इन्हें सियार और वानर की योनि में जन्म लेना पड़ा था।
सियार को मरघट में मुर्दे खाता देख वानर ने पूर्व जन्म का स्मरण करके पूछा -- भैया ! मुझे पूर्व जन्म के हमारी और तुम्हारी मित्रता का पूरा स्मरण है । तुमने पूर्व जन्म में कौन-सा भयंकर पाप किया था, जिसके कारण तुम्हें मरघट में घृणा के योग्य सड़ा हुआ मुर्दा खाना पड़ता है ?
सियार ने जवाब दिया --- मैंने ब्राह्मणों को दान देने की प्रतिज्ञा करके नहीं दिया; इसी पाप के कारण मुझे इस पापी योनि में जन्म लेना पड़ा।
अच्छा, अब तुम बताओ, तुमने ऐसा क्या पाप किया जिससे तुम वानर हो गए ? वानर बोला -- मैं सदा ब्राह्मणों का फल चुराकर खाया करता था, इसी पाप से वानर हुआ।
अतः विद्वान पुरुष को कभी ब्राह्मण का धन अफहरण नहीं करना चाहिए और न ही उनसे कर्ज लेना चाहिये । उसके साथ कभी विवाद भी नहीं करना चाहिए और यदि उन्हें दान देने की प्रतिज्ञा की गई तो अवश्य दें डालना चाहिए।
भीष्म जी ने कहा -- युधिष्ठिर ! इसलिए किसी को ब्राम्हण के धन का अपहरण नहीं करना चाहिए । यदि ब्राह्मण से कोई अपराध भी हो जाए तो उसे शास्त्रानुकूल ही दण्ड देना चाहिए।
बालक, दरिद्र अथवा दीन ब्राह्मण का कभी अपमान नहीं करना चाहिए। पहले तो उन्हें किसी बात की आशा नहीं देनी चाहिए और यदि दे दी तो पूरी करनी चाहिए, क्योंकि पहले की दी हुई आशा के भंग होने पर ब्राह्मण क्रोध में भरकर जिसकी और देखता है, उससे उसे उसी प्रकार भस्म कर डालता है जैसे घास- पूस को आग ; किंतु वही ब्राम्हण जब आशा पूर्ति से संतुष्ट होकर आशीर्वाद देता है तो वह दाता के लिए औषधि के समान हो जाता है, तथा उसके पुत्र, पौत्र, बंधु-बांधव, पशु, मंत्री, नगर और देश का कल्याण करके उन्हें शक्तिशाली बनाता है।
इस पृथ्वी पर सहस्रों किरणों वाले सूर्य देव के प्रचंड तेज की भांति ब्राह्मण का तेज भी देखने में आता है, इसलिए जो उत्तम योनि में जन्म लेना चाहता हो, उसे ब्राह्मण को देने की प्रतिज्ञा की हुई वस्तु अवश्य देनी चाहिए।
इस लोक में ब्राम्हण को दान देने से देवता और पितर तृप्त होते हैं, इसलिए विद्वान पुरुष ब्राह्मणों को अवश्य दान दें। ब्राह्मण महान तीर्थ के समान माने जाते हैं, वे किसी भी समय घर पर आ जाए तो बिना सत्कार किए उन्हें नहीं जाने देना चाहिए।
निष्कर्ष -
मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस कहानी को पढ़कर आपलोगों को इस कहानी का नीचोड़ अवश्य पता हो गया होगा । अत: यदि आप भी हिन्दू धर्म में आस्था रखते हैं तो शास्त्रानुकूल कर्म कीजिए ।
ALSO, READ ---
. Vitamins: complete information of Vitamins A, D, E, K, B, C and biotin
. Nightmares meaning, Treatment
. Causes and treatment of infertility in women
. Causes and treatment of leucorrhea disease

0 टिप्पणियाँ
Please comment here for your response!
आपको हमारा यह लेख कैसा लगा ? कृपया अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, प्रश्न और विचार नीचे Comment Box में लिखें !