
माता महालक्ष्मी जी के स्तोत्र की उत्पत्ति -
स्तोत्र पढ़ने की विधि -
किसी भी स्तोत्र या वंदना को या किसी भी पुण्य कर्म को करने के लिए पवित्र रहना अत्यंत आवश्यक होता है। अत: स्नान के बाद ही पूजा - पाठ करना उचित रहता है । इसके बाद
आचमन - पवित्रीकरण -ध्यान- पंचोपचार पूजन - स्तोत्र पाठ - क्षमा प्रार्थना इत्यादि कर्म अवश्य करना चाहिए।
भगवती महालक्ष्मी स्तोत्र -
नमस्ये सर्वलोकानां जननी मब्जसम्भवाम्।
श्रियमुन्निद्रपद्माक्षीं विष्णुवक्ष:स्थलस्थिताम् ।।1।।
पद्मालयां पद्मकरां पद्मपत्रनिभेक्षणाम्।
वन्दे पद्ममुखीं देवीं पद्मनाभप्रियामहम् ।।2।।
त्वं सिद्धिस्त्वं स्वधा स्वाहा सुधा त्वं लोकपावनी ।
सन्ध्या रात्रि: प्रभा भूतिर्मेधा श्रद्धा सरस्वती।।3।।
यज्ञविद्या महाविद्या गुह्यविद्या च शोभने ।
आत्मविद्या च देवि त्वं विमुक्तिफलदायिनी।।4 ।।
आन्वीक्षिकी त्रयीवार्ता दण्डनीतिस्त्वमेव च ।
सौम्यासौम्यैर्जगद्रूपैस्त्वयैत्तद्यैवि पूरितम् ।।5।।
का त्वन्या त्वमृते देवि सर्वयज्ञमयं वपु:।
अध्यास्ते देवदेवस्य योगिचिन्त्यं गदाभृत: ।।6।।
त्वया देवि परित्यक्त्तं सकलं भुवनत्रयम् ।
विनष्टप्रायमभवत्त्वयेदानीं समेधितम् ।।7।।
दारा: पुत्रास्तथागारसुहृद्धान्यधनादिकम् ।
भवत्येतन्महाभागे नित्यं त्वद्वीक्षणान्नृणाम् ।।8 ।।
शरीरारोग्यमैश्वर्यमरिपक्षक्षय: सुखम्।
देवि त्वद्दृष्टिदृष्टानां पुरुषाणां न दुर्लभम् ।।9।।
त्वं माता सर्वलोकानां देवदेवो हरि: पिता।
त्वयैतद्विष्णुना चाम्ब जगद् व्याप्तं चराचरम् ।।10।।
मा न: कोशं तथा गोष्ठं मा गृहं मा परिच्छदम् ।
मा शरीरं कलत्रं च त्यजेथा: सर्वपावनि ।।11 ।।
पुत्रान्मा सुहृदवर्गं मा पशून्मा विभूषणम्।
त्यजेथा मम देवस्य विष्णोर्वक्ष: स्थलालये ।।12।।
सत्त्वेन सत्यशौचाभ्यां तथा शीलादिभिर्गुणै: ।
त्यज्यन्ते ते नरा: सद्य: सन्त्यक्ता ये त्वयामले ।।13।।
त्वया विलोकिता: सद्य: शीलाद्यैरखिलैर्गुणै: ।
कुलैश्चर्यश्च युज्यन्ते पुरुषा निर्गुणा अपि ।।14।।
स श्लाघ्य: स गुणी धन्य: स कुलीन: स बुद्धिमान्।
स शूर : स च विक्रान्तो यस्त्वया देवि विक्षित: ।।15।।
सद्यो वैगुण्यमायान्ति शीलाद्या: सकला गुणा:।
पराङ्गमुखी जगत्धात्री यस्य त्वं विष्णुवल्लभे ।।16।।
न ते वर्णयितुं शक्ता गुणाञ्जिह्वापि वेधस:।
प्रसीद देवि पद्माक्षी मास्मांस्त्याक्षी: कदाचन।।17।।
क्षमा प्रार्थना -
देवराज इन्द्र व सब देवताओं के द्वारा गायी गयी इस अनुपम व अतिसुन्दर तथा लयबद्ध और सब प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने वाली इस भगवती महालक्ष्मी जी के दिव्य स्तोत्र का महत्व इस प्रकार है -
- जो मनुष्य प्रातः काल या सायं काल इस स्तोत्र से माता महालक्ष्मी की स्तुति करता है उस पर और उसके पूरे परिवार पर माता महालक्ष्मी सदैव प्रसन्न रहती हैं ।
- जिस घर में माता महालक्ष्मी जी के इस स्तोत्र का पाठ होता है , उस घर में कलह का कारण दरिद्रता कभी नहीं ठहरती और सुख , सम्पत्ति , शान्ति और उन्नति सदैव विराजमान रहती है ।
- पुत्र की कामना वाले मनुष्यों को पुत्र की प्राप्ति होती है और उन्नति की कामना वाले की उन्नति होती है।
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