
अष्टांग योग की संक्षिप्त पूर्ण जानकारी :-
Many people do pranayama, meditation, yoga but they do not get success. The main reason for this is that people do not have any knowledge about this Ashtanga Yoga, or even if they do, they do not follow it.
Eight limbs of Ashtanga yoga ( अष्टांग योग के आठ अंग ) :-
1. Description of Yama [ यम ] -
3. Description of आसन -
आसन अनेक प्रकार के हैं । आसन व्यक्ति के बैठने की स्थिति का वर्णन करता है । आसनों का ज्ञान होना आवश्यक है ।
कोई भी आसन हो ; व्यक्ति का मेरूदण्ड , सिर , ग्रीवा को सीधा रखना चाहिए और दृष्टि भृकुटी पर या नासिकाग्र पर होनी चाहिए । आंखें बंद करके बैठ सकते हैं क्योंकि तभी ध्यान लगता है । आसन करते वक्त आलस्य व नींद न आये।
जिस आसन में व्यक्ति सुखपूर्वक दीर्घकाल तक बैठ सकता है , वही उसके लिए उत्तम आसन है ।प्राय: पद्मासन , सिद्धासन श्रेष्ठ माने जाते हैं ।
4. Description of प्राणायाम -
तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम: ।
आसन के सिद्ध हो जाने पर श्वास व प्रश्वास की गति के अवरोध हो जाने या अवरोध करने के नाम या क्रिया को प्राणायाम कहते हैं ।
प्राणायाम में विशेष रूप से तीन प्रक्रिया सम्मिलित होती है - कुम्भक , रेचक , पूरक
प्राणायाम के सिद्ध होने पर मन स्थिर होकर , विवेक का ज्ञान हो जाता है ।
प्राणायाम के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त करके ही प्राणायाम करना चाहिए ।
5. Description of प्रत्याहार -
स्वविषयासंप्रयोगे चित्तस्वरूपानुकार इवेन्द्रियाणां प्रत्याहार: ।
अपने - अपने विषयों के संयोग से रहित होने , इन्द्रियों का चित्त के रूप में अवस्थित हो जाना प्रत्याहार कहलाता है ।
प्रत्याहार से इन्द्रियाॅं अत्यन्त वश में हो जाती हैं और इन्द्रियों पर पूर्ण अधिकार प्राप्त हो जाता है , अर्थात इन्द्रियों की चंचलता समाप्त हो जाती है ।
6. Description of धारणा -
देशबन्धश्चित्तस्य धारणा ।
स्थूल या सूक्ष्म , बाह्य या अभ्यन्तर , किसी एक ध्येय या लक्ष्य स्थान में अपने चित्त को बाॅंध लेना धारणा कहलाता है ।
7. Description of ध्यान -
तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम् ।
चित्त वृत्ति का ध्येय वस्तु या लक्ष्य में गंगाप्रवाह की भाॅंति अनवरत लगा रहना या लगना ध्यान कहलाता है ।
8. Description of समाधि -
तदेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरूपशून्यमिव समाधि ।
ध्यान ही अन्तत: समाधि में बदल जाता है , जिस समय बाह्य व अपने भी स्वरूप का ज्ञान नहीं रहता और केवल ध्येय स्वरूप का ही ज्ञान होता है। अर्थात समाधि में ध्याता , ध्यान , ध्येय - इन तीनों की एकता हो जाती है ।
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